कोई रोनेवाला भी नही …

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आज एक पत्रकार बिहार में मारा गया. कल एक झारखंड में मारा गया था. उसके पहले यूपी में एक पत्रकार को जिंदा जला दिया गया था. छत्तीसगढ़ में 2012 से अब तक 6 पत्रकारों की हत्या हो चुकी है, चार जेल में बंद हैं. दर्जनों पर या तो मुकदमा है या छत्तीसगढ़ प्रशासन से धमकियां मिल चुकी हैं. यहां जनता इस बात से चिंतित नहीं है कि पत्रकारों की लगातार हत्या हमारे देश, इसके प्रशासन और स्वतंत्रता पर प्रश्नचिन्ह है. लोग हर एक घटना के बाद यह साबित करने में लग जाते हैं कि बिहार में जंगलराज है. यह सही है कि बिहार सबसे बेहतर प्रशासन वाला प्रदेश नहीं है. लेकिन आप बताइए अगर छत्तीसगढ़ में कोई जंगलराज नहीं मानता, अगर झारखंड में कोई जंगलराज नहीं मानता, तो बिहार में हर घटना के बाद जंगलराज कैसे आ जाता है? मैं जानना चाहता हूं कि एक मौत के वक्त लोग उस मौत पर दुखी या गुस्सा होने की जगह बिहार में जंगलराज क्यों सिद्ध करने का प्रयास करते हैं? अगर हजारों करोड़ के तीन घोटाले और करीब 60 हत्या करवाने वाले मध्यप्रदेश में जंगलराज नहीं है तो बिहार में कैसे जंगलराज हो गया? क्या अपराध के मामले में बिहार सर्वोच्च पायदान पर है? क्या जंगलराज की बात इसलिए कही जाती है कि बिहार की सत्ता में लालू हैं और जंगलराज का जुमला उनसे चिपका हुआ है? बिहार की यह प्रोफाइलिंग किस आधार पर की जाती है? खैर, फिलहाल मेरी जरूरी चिंता यह है कि यूपी, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड आदि सभी राज्यों में पत्रकारों की हत्या हो रही है और इस पर कहीं कोई चिंता नहीं है. कोई गुस्सा नहीं है. क्या हत्याएं पार्टी के समर्थन और विरोध के आगे इतनी छोटी हो जाती हैं कि सही सवाल तक न उठ सकें?( Bhadas varun )

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