पत्रकार दहशत में है… बागों में बहार है…

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कॉरपोरेट सेक्टर के अपने वेस्टेड इंटरेस्ट है और मज़बूरी। पत्रकार खुलकर लिख नहीं पाता। क्योकि पैसा और नौकरी जाने का डर। खुलकर बोल नहीं पाता आलोचना नहीं कर सकता क्योकि आलोचना करना मतलब किसी का पक्षधर होने का संगीन आरोप। कौनसी स्टोरी कवर करनी है। स्टोरी में कंटेंट क्या देने चाहिए। कैप्शन क्या देना है। लीड स्टोरी, एडिटोरियल क्या रहेगा। कौनसी स्टोरी फ़ाइल करनी है। किसके खिलाफ लिखना है। स्टोरी से किसका नाम हटाना है। किसे तर्जी देनी है। अजेंडा सेट है। अब अजेंडा सेट मीडिया हाउसेस के मालिक करते है। एडिटर इन चीफ केवल नामधारी बुद्धिजीवी है। आज पत्रकारों की स्थिति देखकर लगता है। पत्रकार दहशद में है फिर भी बागों में बहार है।

सुजीत ठमके
पुणे – ४११००२
sthamke35@gmail.com

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