सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं

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पत्रकारितेत येण्यापुर्वी अनेक तरूण वेगवेगळा ध्येयवाद घेऊन येत असतात.समाजाला बदलण्याची,व्यवस्था परिवर्तनासाठी लेखणी झिजविण्याची उर्मी त्यांच्यात असते , मात्र हळूहळू पत्रकारितेतलं वास्तव त्याला समजू लागतं आणि तो मग पत्रकारितेतील व्यवस्थेचाच हिस्सा होऊन जातो.पत्रकारांची दुःख,वेदना आणि होणाऱ्या भ्रमनिराश्यावर बोट ठेवणारी ही कविता भडासवर प्रसिध्द झाली आहे.ही कविता प्रत्येक पत्रकाराला लागू होत असल्यानं बातमीदारच्या वाचकांसाठी येथे देत आहोत.

 

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं
ना समझ था पहले अब समझदार हो गया हूं।

बहुत गुस्सा था इस व्यवस्था के खिलाफ
अब उसी का भागीदार हो गया हूं।

दिल पसीजता था राह चलते हुए पहले
कलम हाथ में आते ही दिमागदार हो गया हूं।

कभी नफरत थी कुछ छपी हुई खबरों से मुझे
आज उन्हीं खबरों का तलबगार हो गया हूं।

सोचा था अलग राह पकडूंगा पत्रकार बनकर
अब मैं भी भेड़ चाल में शुमार हो गया हूं।

लिखकर बदलने चला था दुनिया को मैं
नौकरी की वफादारी में खुद बदल गया हूं।

मुझे दिख रही है देश की तरक्की सारी
क्योंकि अब मैं नेताओं का यार हो गया हूं।

इंकबाल वंदे मातरम कई नारे आते हैं मुझे
पर क्या करूं विज्ञापनों के कारण लाचार हो गया हूं।

ढूंढता था पहले देश की बेहाली के जिम्मेदारों को
समझ गया हूं सब कुछ, अब मैं समझदार हो गया हूं,

सुना है कि अब मैं पत्रकार हो गया हूं।

 

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